अमोल मालुसरे- घरेलु हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 की धारा 2 परिभाषाएं में विहित किये गये “दहेज” से क्या अभिप्रेत है ?
उत्तर- घरेलु हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 की धारा 2 परिभाषाएं में विहित किये गये अनुसार
इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
“दहेज” का वही अर्थ होगा, जो दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की धारा 2 में है;
दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के धारा 2 में विहीत किये गये अनुसार “दहेज” की परिभाषा निम्नानुसार-
इस अधिनियम में “दहेज” से तात्पर्य है-
(क) विवाह के एक पक्ष द्वारा विवाह के दूसरे पक्ष को, या
(ख) विवाह के किसी भी पक्ष के माता- पिता या अन्य व्यक्ति द्वारा विवाह के किसी भी पक्ष या किसी अन्य व्यक्ति को,
विवाह करने के संबंध में विवाह के समय या उसके पूर्व या पश्चात किसी समय प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप में दी जाने वाली या दी जाने के लिए प्रतिज्ञा की गई किसी सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति से है किन्तु इसमें उन व्यक्तियों की दशा में मैहर नही होगा जिन पर मुस्लिम स्वीय विधि शरीयत लागू होती है।
स्पष्टीकरण I- xxx
स्पष्टीकरण II “मूल्यवान प्रतिभूति” से वही तात्पर्य है, जो कि भारतीय दण्ड संहिता 1860की धारा 30 के अधीन होता है।
टिप्पणी
धारा 2 दहेज की परिभाषा – यह अपेक्षा कि दिए गऐ या जाने हेतु सहमत सम्पत्ति या मूल्यवान सामान “विवाह हेतु प्रतिफल” के अर्थ में होना चाहिए। विवाह के पश्चात की गई माँग भी प्रतिफल का हिस्सा हो सकती है। ऐसी माँगे दहेज की परिभाषा के अन्तर्गत आएंगी। 1984 का अधिनायम 63 और 1996 का 43 के द्वारा संशोधन समस्त संदेह दूर करता है और स्पष्ट करता है कि विवाह के विधिवत सम्पादन के पश्चात की गई माँग दहेज की परिभाषा में आएगी। हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम निक्कु राम, 1995 (6) SCC= 1995 SCC (Cr) 1090= 1995 CrLJ 4184 (SC) = 1995 (5) Scale 94
धारा 2 – दहेज मृत्यु- अपराध में सह अपराधिता- यह सिध्द करने के लिए घटना के समय मृतक की सास उसके बेटे के घर पर मौजूद थी, रिकार्ड पर कोई साक्ष्य नही है- अभियोजन द्वारा दुर्व्यवहार का कोई विनिर्दिष्ट दृष्टांत सिद्ध नही किया गया। अभियुक्त को आरोप से बरी
किया गया। प्रेमसिंहबनाम हरियाणा राज्य, AIR 1998 SC 2628= 1998 CrLJ 4019 (SC)
धारा 2 दहेज मृत्यु- शब्द “दहेज” परिभाषित अनुसार – की परिधि, विवाह से पहले या विवाह के समय अनुबन्ध या दहेज के भुगतान हेतु माँग तक सीमित नहीं- बल्कि इसमें विवाह के पश्चात की गई माँगे भी सम्मिलित है। आंध्र प्रदेश राज्य बनाम राज गोपाल असावा एवं अन्य 2004 CrLJ 1791 (SC).
धारा 2 दहेज भूमि की 25 सेंट की सम्पत्ति की मांग करने का कथन किया गया- भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304 ख के प्रावधानों को आकर्षित करने के लिए धारा 2 में परिभाषित अनुसार शब्द “दहेज” के अर्थ में आता है- नजर और अन्य बनाम केरल राज्य, 2005 CrLJ 1974 (Ker)
धारा 2 पक्षकार का मुख्तारनामा धारक सम्यक अनुक्रम में पाने वाले या धारक की तरफ से शिकायत प्रस्तुत कर सकता है। हालांकि न तो दण्ड प्रक्रिया संहिता न ही पराक्रम लिखत अधिनियम यह निर्दिष्ट करता है कि कोइ भी व्यक्ति शिकायतकर्ता की तरफ गवाह के रूप में उपस्थित हो सकता है। मैं. जी. जे. पेकोजिंग प्राइवेट लि. और अन्य बनाम में एस. एच. सेल्स और अन्य 2006 CrLJ 214 (Bom).
धारा 2 न्यायिक राय की रूपरेखा यह सिध्दान्त स्थापित करती है कि परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 के अधीन दण्डणीय अपराध के संबंध में शिकायत सम्यक अनुक्रम में पाने वाले या धारक धारा व्यक्तिगत रुप से प्रस्तुत करने की आवश्यकता नही होती है। यह पाने वाले के मुख्तारनामा धारक द्वा प्रस्तुत की जा सकती है। जहां शिकायतकर्ता विधिक व्यक्ति है, वहां यह वस्तुत: शिकायतकर्ता के रुप में कार्य करने के लिए प्राकृतिक व्यक्ति द्वारा प्रतिनिधित्व किया जा सकता है। मैं. जी. जे. पेकेजिंग प्राइवेट लि. और अन्य बनाम मैं. एस.एस. सेल्स और अन्य 2006 CrLJ 214 (Bom)
धारा 2,4 और 3 “दहेज की माँग” अपने आप में दण्डनीय है- दोषसिध्दी चाहने हेतु दहेज के लिए अनुबन्ध अनिवार्य नही है- परिभाषित साक्ष्य द्वारा निष्कर्ष निकाला जा सकता है। आंध्र प्रदेश राज्य बनाम राज गोपाल असावा एवं अन्य 2004 CrLJ
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